भगवान श्री चित्रगुप्त प्राकट्य
भगवान श्री चित्रगुप्त का प्राकट्य: कायस्थ समाज के आराध्य देव
गंगा सप्तमी के पावन अवसर पर, कायस्थ समाज अपने आराध्य देव, भगवान श्री चित्रगुप्त जी का प्रकटोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाता है। यह दिन भगवान चित्रगुप्त जी के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने का एक विशेष अवसर होता है।
पूजा विधान:
इस शुभ दिन, चित्रगुप्त मंदिरों में उनका पंचामृत स्नान, श्रृंगार, हवन, आरती तथा कलम-दवात की पूजा की जाती है। भक्तगण भगवान चित्रगुप्त जी की कृपा प्राप्त करने के लिए मंत्रों का जाप करते हैं।
प्रार्थना मंत्र:
- श्री चित्रगुप्त जी की प्रार्थना मंत्र: मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्। लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।
- भगवान श्री चित्रगुप्त जी का मंत्र: ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः
महत्व:
- ज्ञान और विद्या: भगवान चित्रगुप्त जी को ज्ञान और विद्या का देवता माना जाता है। उनकी पूजा करने से विद्यार्थियों को एकाग्रता और स्मरण शक्ति प्राप्त होती है, लेखकों को रचनात्मकता प्राप्त होती है, और कलाकारों को अपनी कला में निपुणता प्राप्त होती है।
- न्याय और कर्म: भगवान चित्रगुप्त जी को न्याय का देवता भी माना जाता है। वे मृत्यु के बाद प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और उन्हें यमपुरी में उनके कर्मों के अनुसार स्थान देते हैं। उनकी पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- समृद्धि और सफलता: भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा करने से जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
अन्य त्यौहार:
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ अन्य प्रदेशों में भगवान श्री चित्रगुप्त जी का प्रकटोत्सव वैशाख शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता है।
भगवान श्री चित्रगुप्त जी का प्रकटोत्सव ज्ञान, विद्या, न्याय, और कर्म का महत्व दर्शाता है। यह दिन हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने और सदैव सत्य और न्याय का मार्ग अपनाने की प्रेरणा देता है।
इसके अतिरिक्त, भगवान श्री चित्रगुप्त जी के जीवन और उनके कार्यों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- भगवान चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति: भगवान चित्रगुप्त जी परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं। कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर भगवान चित्रगुप्त जी विराजमान थे।
- भगवान चित्रगुप्त जी के कार्य: भगवान चित्रगुप्त जी को यमराज का सहायक माना जाता है। वे मृत्यु के बाद प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और उन्हें यमपुरी में उनके कर्मों के अनुसार स्थान देते हैं। वे यमराज को सलाह भी देते हैं।
- भगवान चित्रगुप्त जी के स्वरूप: भगवान चित्रगुप्त जी को चार हाथों वाला देवता माना जाता है। उनके हाथों में कलम, दवात, करवाल और पुस्तिका होती है। वे सफेद वस्त्र धारण करते हैं और उनके मस्तक पर मुकुट होता है।